09 November 2013

प्रैक्टिकल फल सब्जी प्रसंस्करण एवं संरक्षण

प्रैक्टिकल फल सब्जी प्रसंस्करण एवं संरक्षण 

विजय कुमार शाह

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प्रस्तावना
छोटे फल सब्जी पदार्थों के उत्पादकों को अक्सर आधुनिक प्रद्योगिकी का ज्ञान नहीं मिल पाता, क्योंकी इस विषय की अधिकांश पुस्तकें अंग्रेजी में लिखी हैं और पाश्चात्य फल उत्पादों के बारे में ज्यादा विवरण देतीं हैं | यह पुस्तक हिन्दी भाषी भारतीय उद्यमियों को ध्यान में रख कर लिखी गयी है | इसे ब्लॉग के माध्यम से आप तक पहुँचाने का प्रयास किया जा रहा है |

खाद्य प्रसंस्करण का अर्थ है खाद्य पदार्थ का रूप बदलना जैसे गेहूं से रोटी बनाना | खाद्य संरक्षण अर्थात खाद्य पदार्थ को अधिक समय तक खाने लायक बनाए रखना जैसे गेहूं के दाने को सुखा कर साल भर रखना अथवा फल सब्जी को घर के फ्रीज़ में कुछ दिनों के लिए रखना | आम का अचार बनाने में ये दोनों ही प्रक्रिया होती हैं |

हमारे देश में खाद्य संरक्षण की अवधारणा पश्चिमी देशों से भिन्न है | शीत कटिबंध के देश साल के कई कई महीनों तक बर्फ से ढके रहतें हैं | ऐसी अवस्था में वहां खेती नहीं हो पाती | हरियाली के अभाव में उस समय उन देशों में पशु पक्षी भी कम हो जातें हैं जिनका शिकार कर पेट भरा जा सके | अतः गर्मी के समय उत्पन्न कृषी जन्य और पशु पक्षी को संरक्षित करना उनके लिए आवश्यक है जिससे वे सर्दी में जीवीत रह सकें | एक सज्जन जो रूस में कई साल रहे, बता रहे थे कि रूस के उस इलाके में 10 महीने बर्फ जमी रहती थी केवल दो महीने पिघलती थी, उस समय वहां के निवासी आलू की फसल उगाते थे | उस समय घास भी बहुत निकलती थी जिसे खाने के लिए ढेरों खरगोश आ जाते थे | बस वहां रहने वाले जमीन में गढ्ढे खोद कर उसमें आलू और खरगोश भर देते थे जो बर्फ के कारण ख़राब नहीं होता था और वह उनका सर्दियों में मुख्य भोजन रहता था |

भारत जैसे देश जहाँ कृषी उत्पादों की बहुलता है और वे पूरे वर्ष भर उपलब्ध भी रहतें हैं खाद्य संरक्षण के बारे में भिन्न अवधारणा है | अनाज, मसाले, दाल जैसी कृषी जन्य उत्पादों को तो हम सुखा कर या न्यूनतम प्रसंषकरण द्वारा अगले मौसम तक के लिए संरक्षित कर लेतें हैं | आलू प्याज जैसी सब्जियों और सेव को भी शीत घरों में रखने का चलन बढ़ गया है | परंतू अधिकांश फल सब्जियों को हम ताजा ही खाना पसंद करतें हैं | मौसम में हम खूब मटर और आम खातें हैं परंतू बाद में उन्हें संरक्षित रूप में उपभोग करने के बजाय हम उस दूसरे मौसम की फल सब्जी को खाना पसंद करतें हैं | वास्तव में प्रसंस्करण और संरक्षण की प्रक्रिया खर्चीली होती है तथा उस प्रक्रिया में पोषक तत्वों का व्हास भी होता है | इसलिए सिवाय कोल्ड स्टोरेज, सुखाना और अन्य सस्ती विधियों के अलावा महंगी विधियाँ जैसे कैनिंग तो हमारे देश के लिए उपयुक्त नहीं ही हैं |

अब संरक्षित खाद्य पदार्थों का बाजार बढ़ रहा है | लेकिन इनके मुख्य उपभोक्ता विदेशी टूरिस्ट, निर्यात, फ़ौज और होटल ही हैं | औसत भारतीय तो अचार, मुरब्बा, सास और शरबत ही उपभोग करता है | हाँ शीतल पेय और शहरों में जैम का भी उपयोग बढ़ा है | सरकारी स्तर पर बातें होती हैं की भारत में बहुत सी फल सब्जी और अनाज नष्ट हो जाता है और उसे प्रसंस्करण द्वारा संरक्षित करना चाहिए | पर यहाँ समस्या उचित भण्डारण और वितरण की है न कि प्रसंस्करण की | उन्नत देश जहाँ खाद्य प्रसंस्करण बड़ी मात्रा में होता है, वे अधिक खाने, खाद्य पदार्थ की एक्सपायरी, संरक्षण के लिए प्रयुक्त रसायन के साईड इफेक्ट, पैकिंग सामग्री का निस्तारण जैसी समस्याओं से जूझ रहें हैं |

फिर भी खाद्य प्रसंस्करण उद्योग का भारत में प्रसार हो रहा है | आगे आने वाले समय में ‘मॉल’ कल्चर का विस्तार, हमारी युवा पीढी का पाश्च्यात सभत्या से संपर्क, टी वी के फ़ूड चैनेल और विज्ञापन, मनोरंजन के साधन की उपलब्धता के कारण रसोई में कम समय दे पाना, छोटे परिवार, रेस्टुरेंट में खाना, बच्चों को सुबह जल्दी स्कूल भेजने का टिफिन, महिलाओं का भी काम पर जाना इत्यादी कई कारण लोगों का रूझान प्रसंस्कृत खाद्य पदार्थों की तरफ बढ़ रहा है | इसलिए अब हमारी खाद्य प्रसंस्करण इकाईयों को आधुनिक बनना होगा |

विकासशील देशों में उपभोक्ता पदार्थ बनाने वाली कंपनियों के सामने अब एक नई परिस्थिति आ गयी है | स्थानीय सुपर 
मार्केट चेन की भागीदारी खाद्य पदार्थों की बिक्री में बढ़ रही है इससे अब प्रतिस्पर्धा विश्व स्तरीय हो गयी है क्योंकी अन्य देशों में बने उत्पाद  अब आसानी से इन मॉल में मिलने लगे हैं | बड़े उत्पादक जिनके पास आवश्यक आर्थिक, आधुनिक प्रबंधन और प्राद्योगिकी छमता है, इन नई चुनौतियों का सामना करने में सच्छम हो रहें हैं, पर छोटे उत्पादक इस प्रतिस्पर्धा का सामना तभी कर पाएंगे जब वे अपने को इस बदले हुये व्यापारिक ढांचें में ढालेंगे | उत्पादन की विधी कुछ भी हो, लेकिन प्रोद्योगिकी ऐसी हो जो कि संसाधनों का पूर्ण उपयोग करते हुए अधिकतम उत्पाद दें, उत्पादन की लागत कम करें तथा उनका अपव्यय बचाएं, तैयार उत्पाद की गुणवत्ता उँची हों, और उसे एक आकर्षक स्वरुप में ग्राहकों के सामने प्रस्तुत करें | 

यह बहुत जरूरी है कि अब हमारी सोच अंतर्राष्ट्रीय हो | हमें अपनी प्राचीन परंपराओं का पालन करते हुए नए जमाने के साथ चलना होगा तभी हम इस प्रतिस्पर्धा के युग में अपना स्थान बनाने में सफल होंगे | इस युग में उत्पाद को सभी दृष्टीकोण से गुणवत्ता की परख में खरा उतरना पड़ेगा तथा इस बढती हुई प्रतिस्पर्धा के युग में खाद्य विपणन कर्ता को संतुष्ट करना होगा जिससे अंततः ग्राहक खुश हो सके |

मुख्यतः छोटे उत्पादकों, यद्यपि बहुत सालों से शायद पीढ़ियों से उत्पादन करतें आ रहें है लेकिन अगर उत्पादन में कोई नई समस्या आ जाती है तो उन्हें उसका समाधान करने में अक्सर कठनाई होती है | उत्पादन के वैज्ञानिक पहलुओं को समझने से उन्हें मालूम पड़ेगा कि जो सामग्री या विधी उत्पादन के समय वे प्रयोग करते हैं वह क्यों करतें है तथा उसकी क्या भूमिका है | यह ज्ञान समस्या के समाधान में मदद करेगा |

यद्यपि खाना बनाने की विधी बहुत प्राचीन है तथा उसमें मूलभूत परिवर्तन ज्यादा नहीं हुए है, पर कई नए रसायन, ऐडेटिव, मशीनरी एंव प्राद्योगिकी का आविष्कार हुवा है | वर्तमान बाजार में पैकिंग और बाहरी स्वरुप का स्थान सर्व प्रथम हो गया है इसलिए उत्पाद को आकर्षक दिखना जरूरी हो गया है नहीं तो वह कितना भी स्वादिस्ट और पोषक क्यों न हो, ग्राहक में खरीदने की इच्छा उत्पन नहीं कर पायेगा |

इस पुस्तक को अपने देश की परीस्थीतियों तथा ख़ास तौर पर छोटे उत्पादकों को ध्यान में रखते हुवे लिखा गया  है |

                                                                                                                     9.11.2013



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1 comment:

  1. धन्यवाद इतने अच्छे विषय पर किताब लिखने के लिए. किताब की पहुच गांवों के बुक स्टालों तक जरूर सुनिश्चित करें. आपके किताब का यह अंश भी बेहद शानदार और जानकारियों से भरा है. किताब और आपके जीवन के लिए शुभकामनायें.

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